जानलेवा है ये कैंसर, लक्षण दिखते ही जांच जरूर कराएं…वरना जा सकती है जान…जानिए कैसे!

Cancer Treatment: ट्यूमर (गांठ) बॉडी में दो तरह के होते हैं. एक कैंसर और दूसरी नॉन कैंसर. कोशिकाएं अनियंत्रित रूप से बढ़कर एक ट्यूमर बना देती हैं. इसकी बायोप्सी कराने पर ही इसकी पहचान हो पाती है कि यह कैंसर वाली गांठ है या नॉन कैंसर वाली. यह बॉडी में कहीं भी हो सकता है।

कैंसर की विशेष बात यह है कि शुरुआत में इसकी पहचान बड़ी मुश्किल से हो पाती है. जब यह अन्य अंगों में पहुंच चुका होता है और Cancer Symptoms गंभीर हो जाते हैं. तब इसका पता चलता है. ऐसा ही एक और कैंसर है, जिसे Silent Killer के नाम से जाना जाता है. आइए जानते हैं इस कैंसर के बारे में…

फेफड़ों का कैंसर होता साइलेंट किलर:~

डॉक्टरों के मुताबिक, जब इसकी शुरुआत फेफ़ड़ों की कोशिकाओं में होती है, तब इसे फेफड़ों का कैंसर या लंग कैंसर (Lung Cancer)कहा जाता है. यह कैंसर धीरे धीरे व्यक्ति की जान ले लेता है, इसलिए इसे साइलेंट किलर कहा जाता है. इसके होने का मुख्य कारण धूम्रपान है. जल्दी जांच होने पर व्यक्ति लंबे समय तक जीवन जी सकता है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, केवल 15% फेफड़े के कैंसर का शुरुआती स्तर पर इलाज किया जा सकता है. यहां भी 5 साल तक जिंदा रहने का रेट लगभग 54% है. फेफड़े के कैंसर के लगभग 70% रोगी शुरुआती चरण में ट्रीटमेंट के बाद थोड़ा अधिक जी लेते हैं. ट्यूमर के अन्य अंगों में फैल जाने पर यानि चौथे स्टेज में आने पर पांच साल तक जीवित रहने की दर घटकर केवल 4 प्रतिशत रह जाती है।

जरूरी नहीं सिगरेट पीते हो:~

अधिकतर मामलों में फेफड़े के कैंसर का प्रमुख कारण सिगरेट पीना पाया गया है या फिर बीड़ी व अन्य तरह की स्मॉकिंग करना भी कैंसर होने का बड़ा कारक है. हालांकि, आजकल लंग कैंसर उन लोगों में भी देखा जा रहा है, जिन्होंने कभी धूम्रपान नहीं किया है. फेफड़ों के कैंसर के कोई विशिष्ट शुरुआती लक्षण नहीं होते हैं।

लक्षण और ट्रीटमेंट:~

लंग कैंसर का सबसे सामान्य लक्षण खांसी है, जो धीरे धीरे गंभीर होती जाती है और कभी ठीक नहीं होती है. दवा खाने पर थोड़ा आराम मिलता है. फिर शुरू हो जाती है. बाद में फेफड़ों पर सूजन आना, खांसने पर खून आना, सांस लेने में तकलीफ और दर्द भी इसके सिम्पटम्स हैं. अगर ट्रीटमेंट की बात करें तो सर्जरी, कीमोथेरेपी और रेडियेशन थेरेपी शामिल हैं. लंग कैंसर के प्रकार, स्टेज और अन्य कारकों के आधार पर डॉक्टर सही ट्रीटमेंट का निर्णय लेते हैं. अगर प्राइमरी स्टेज में है तो ठीक होने की संभावना अधिक होती है. यदि लास्ट स्टेज मेटास्टेसिस(बॉडी के अन्य अंगों में कैंसर का फैलाव) है तो इलाज होने के बाद भी मरीज कुछ महीने या कुछ साल ही जिंदा रह पाता है।

About शिवांकित तिवारी "शिवा"

शौक से कवि,लेखक, विचारक, मुसाफ़िर पेशे से चिकित्सक! शून्य से आरंभ...

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